*करण बेवडा आधापाव मारके है….!*
*खापा एस टी बस स्टँड कार्यालयमे चपरसी का आतंक*
सावनेरः महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल की ओरसे ग्रामीण क्षेत्रके छात्र छात्राओ तथा ग्रामीणोको सहजतासे अपने गंतव्य तक पहुचाने हेतू बसेस उपलब्ध कराना.बसोका सुचारु रुपसे आवागमन हो ईस वास्ते सर्व सुविधायुक्त बस स्थानक निर्माण आदी बडे पैमानेपर कीये जारहे है.ये सभी कार्य सुचारु रुपसे चले इसकेलीये वहा बस स्थानक व्यवस्थापक,बाबु,चपरासी आदीकी नियुक्ती कर उन्हे उचीत मासीक पगार भी दीया जाता है.फीर भी कुछ कर्मी अपने कर्तव्यदक्षता को भुलाकर अपनेही विभागके कीरकीरी का सबब बनते है ऐसेही एक मामला सावनेर तहसीलके खापा बस स्थानक पर उजागर होनेसे वरिष्ठ अधिकारीयोके कार्यप्रणाली तथा नियोजनोकी पोल खोलने हेतू काफी है*
*महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल के नागपुर जीला तथा सावनेर एस टी डेपो के अंतर्गत कार्यरत खापा बस स्टँड कार्यालयमे शाम करिब 6-00 के लगभग कार्यालयमे कार्यरत डेलीव्हिजेस कर्मचारी कार्यालय प्रमुखके कुर्सीपर बैठकर जीस प्रकार की हरकते कर रहा है वो पुरे एस टी महामंडल को शर्मसार करणे हेतू काफी है.*
*प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब दो दीन पहले शाम 6-00 बजेके दरम्यान कुछ छात्र छात्राये अपने गाव पहुचाने हेतू बसोकी जानकारी तथा कुछ पेयजल आदीकी जानकारी लेने हेतू कार्यालय पहुचते है.तो बाबू वहासे नदारद होते है तथा वहा बाबू की कुर्सीपर रोजमजुरीसे कार्यरत कर्मी रामराव कोलते बैठे हुये तथा अनापशनाप बडबड करते दीखाई पडते है.कुछ भी जानकारी पुछनेपर वे ऐखादे बेवडेकी तरह भडक उठ प्रवासीयोसे अभद्र व्यवहार करणे लगते.उक्त घटनाकी जानकारी युवा समाजसेवी मुकेश पावडे,प्रज्वल नंदनवार आदीको होनेपर वे खापा बस स्थानक कार्यालय पहुचकर हकीकत जानने की कोशीश करते है.तो वहा विराजमान महाशय एस बस स्थान उदघोषक की तर्जपर “करण बेवडा़ आधापाव मारके है”,”बाबू दो सौ रुपये की वसुली पर गये है,आयेंगे तो सौ रुपये मेरेको देयेंगे,बाबू करणं तोता है आदी बड़बडाते नजर आये.और उक्त घटना वहा उपस्थित प्रवासीयोव्दारा अपने मोबाईल मे करणेसे खापा एस टी बस स्टँडपर कर्मचारीयोकी दबंगीरी तथा अकार्यक्षमता उजागर हुँयी*
*महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल के कर्मचारी व्दाराही एस टी मंडल की कीरकीरी करानेवाले उक्त घटनाकी उच्चस्तरीय जाँच कर दोषीयोपर कडी कारवाई की मांग उठने लगी है*
*इस संदर्भमे हमारे स्थानिक संवाददाताने अधिक जानकारी लेनेपर पता चला की ये रोजानाके हालात है तथा यहा नियुक्त बाबू इसी प्रकारसे नदारद होते है कभी आये तो आये और आये भी तो जब मन हुआँ उठकर चले.फी र सारे कार्यालयपर ईन्ही महाशय का राज और मनमानी का दौर चलते रहनेकी बात खुलकर आगे आने लगी है.*