*हरदीन होती युवाओकी आत्महत्या गहन चिंतनका विषय*
सावनेरः आयेदीन हो रही युवकोको की आत्महत्यासे जहा पालकवर्गमे चिंताये बढ रही है.वही समाजमन एकदम सुन्न सा होता प्रतीत हो रहा है.लगातार बढती आत्महत्याये क्यो और कीस कारणसे हो रही है यह एक बडाही चिंताजनक विषय बनते जा रहा है.*
*लगातार होती आत्महत्याओपर बारीकीसे गौर कीया जाय तो आयपीएल,जंगली रमी, नादानी अथवा युवा अवस्थाका प्यार, मातपीता या कौंटुबीक कलह,परिक्षाओके परिणाम, कम उम्रमे नशापान,बेरोजगारी, पपजी एंव कर्ज आदी विषय सामान्यतासे दीखाई पडते है.इन विषयोको झेलनेका आत्मविश्वास एकतो पारिवारिक संस्कार, योग्य मीत्र परिवार तथा उचित समुपदेशक ही आजकी पीढीको अंदरसे मजबुती प्रदान कर सकता है.इसमे शाला, काँलेज, महाविद्यालयमे मीलनेवाले बौद्धिक शिक्षणके साथ साथ मेडीटेशन, योग, सामुहिक वंदना, जमीनी खेल तथा परिवारमे हर युवा तथा बच्चोके हावभावो पर नजर रखकर उनसे बाते करके इसे टाला जासकता है*
*स्कुल, काँलेज, महाविद्यालय, रोजगार आदीसे घर वापस आते अपने बच्चोपर ध्यान दे.उनसे बात करे उन्हे अकेला ना छोडे़, बार बार पढाई पढाई की रट ना लगाये. उनसे बात करे अगर हमारा बच्चा कीसी अवसाद या परेशानी मे है तो उसे भरोसा दिलाये की सारा परिवार उसके साथ है. ना की उसे डाटकर या उल्टा सीधा बोलकर उसकी परेशानीया बढाये.*
*प्राय देखा जा रहा है की अधिकतर पालक नौकरी,व्यापार तथा अपने अपने रोजगारोमे व्यस्त रहनेसे बच्चोसे बात नही कर पाते तो वही माताये कभी सास भी कभी बहु थी, ये रिश्ता क्या कहलाता है के चक्करमे ध्यान नही देती.जीससे बच्चोका मनोबल टुटने लगता है जीससे वे इस प्रकारके आत्मघाती कदम उठानेको विवश हो जाते है*
*कोई भी कदम उठानेसे पहले अपने परिवार का विचार करे*
*आये दिन बढती आत्महत्याये सभीके लीये चिंताका विषय है.नागपुर मेट्रो समाचार सार्वजनिक तौरपर सभीसे विनंती करता है की ऐसे आत्मघाती कदम उठानेसे पहले उसके परीणाम क्या हो सकते है.जीस परिवारने हमे इतना सब कुछ दीया है उसके बदलेमे हम उन्हे यु तडफता छोडना क्या उचीत होगा.हमारे बाद हमारे परिवार के हालात क्या होगे यह सब जरुर सोचे.अगर मन मे नाकारत्मत विचार आरहे है तो अपने माता पीता,भाई बहन, रिश्तेदार या यार मीत्रोसे अवश्य बात करे ताकी कोई समाधान निकल सके. मौत तो अटल है इससे कोई नही बचने वाला जीसने जन्म लीया है वो एक दिन जरुर मरेगा परंतु ऐसे अनैसर्गिक तथा आत्मग्लानी भरी मौतोसे बडे बडे परिवार उजड जाते है.इसलीये आये प्रसंगोका धर्यपुर्वक सामना करे*
आत्महत्या अंतिम पर्याय नही – अँड्. बरेठीयाँ
*आजकल के युवाओ को पता नही क्या हो रहा है.वे क्यो ऐसे आत्मघाती कदम उठाकर अपना जीवन समाप्त कर रहे इस और परिवार,समाज के साथ साथ सरकारोको भी ध्यान देना होगा. अगर यह आत्महत्याका सीलसीला ऐसेही जारी रहा तो आनेवाला समय बहोत कठीण होगा.*
*मै मानता हुँ मंहगाई,बेरोजगारी, आर्थिक मंदी आदीके दौरमे घर परिवारकी जवाबदारी के साथ अपने इच्छा आकांक्षाओकी तीलांजली देना पडता है.मै युवाओसे अनुरोध करता हु की वे धर्य रखे. अच्छा समय आता नही मेहनतसे लाया जाता है. जीसके लीये धर्य और संघर्ष जरुरी है. इसलीये अपने लक्ष पर नजर रखे उसे पानेकी कोशीश करे यह मानवी जीवन है इसमे आत्महत्या अंतीम पर्याय नही.*
जीवन अनमोल है इसे ऐसे नष्ट ना करे – डॉ.अमित बाहेती
*आजकल के युवाओमे सहनशीलता की कमीको नाकारा नही जासकता. इसका मुख्य कारण बचपनसे ही पढाई का स्ट्रेस , पढाई के बाद उचित रोजगार तथा पँकेज की भागमभाग, व्यवसायीक उतार चढाव ,माता पीता व्दारा अधीककी अभीलाषा युवाओको अकेला रहनेपर या अवसादमे धकेलनेको मजबुर करती है. और यहीसे तनाव भरे वातावरण की शुरुवात होती है.*
*माता पीता तथा परिजनोको चाहीये की वे अपने बच्चोके साथ दोस्ताना रवैय्या अख्तीयार करे जीससे वह अपने मन की बात आपसे बेझीजक कहे. उसे वही करणे दे जो उसे अच्छा लगता हो.अपने अच्छे बुरे अनुभव बच्चोसे शेअर करे ताकी अचानक आये संकटमे वह धर्यसे सामधा कर सके. प्रगतशील समाजमे आयेदीन कुछना कुछ ऐसे घटीत होता है जो हमे सोचनेपर मजबुर कर देता है. बढती आत्महत्याये भी उन्हीमेसे एक है.ईसके लीये हम सभीको मीलकर काम करनेकी जरुरत है.युवा देशका भविष्य है जिसकी हिफाजत करणा हमारा कर्तव्य है. ऐसे अवसाद तथा टेन्शन मे जी रहे युवाओसे मै अपील करना चहाता हुँ की सभी समस्याओका हल मात्र आत्महत्या नही है. हिम्मतसे सामना करो. आपके और आपके परिवारके पास जो भी संसाधन है उसका उपयोग कर अपना जीवन उज्वल बनाओ और औरोके कलीये आदर्श बनो ऐसे विचार डॉ.अमित बाहेतीने व्यक्त कीये*
तनाव भरे जीवनसे बचे – डॉ.शिवम पुण्यानी
*बढते आत्महत्याओके मामलोके बारेमे हमारे स्थानिक संवाददाता ने कुछ चिकित्सकोसे बात की युवा चिकित्सक डाँ शिवम पुण्यानीने इस विषयपर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा की आजका युवा तनावभरा जीवन व्यतीत कर रहा है. इसके लीये अधिकतर मोबाईल, सोशल मिडियाका अत्याधिक उपयोग.माता पीतासे उचीत संवाद न होना, घर, स्कुल, काँलेज तथा रोजगार आदीकी समस्याये एक दुसरेसे शेअर ना करना जीससे तनाव बढते जाता है तथा निराशाजनक स्थीती बन यह स्थीती अवसादमे रुपांतरीत होकर ऐसे आत्मघाती कदम उठानेको मजबुर करती है.ऐसेमे परिजनोने बच्चोसे बातचीत करना उसकी पसंद नापसंद का ध्यान रखना, अगर हमारा बच्चा बुरी आदतोका शिकार हो रहा है तो अच्छे डॉक्टर या मनोचिकीत्सक से परामर्श लेकर बच्चोके मनमे पल रही अवधारनाये या आत्मघाती विचार दुर करानेके प्रयास होने चाहीये. जीसके लीये हम मेडीटेशन योग प्राणायाम आदीका भी सहारा ले सकते है जीससे हम ऐसी घटनाओमे कमी लासकते है ऐसे विचार डॉ.शिवम पुण्यानी ने व्यक्त कीये*
नशा हो कुछ कर गुजरनेका – डॉ गुंजन धुंडेले
*मानव जीवन बहोत ही मुश्कीलसे मीलता है. और इसे ऐसे व्यर्थ गवाना उचीत नही. आजका युवा सीर्फ अभी का और आजका विचार करता है. उन्हे तुरंत नतीजोकी अपेक्षा रहती है. ऐसा नही होता हर चीज समय समय पर जरुर मीलती है बस सैय्यमसे काम लेना होता है. और सैय्यम रखना इनके बसकी बात नही होती. जीससे वे सदाही निगेटिव्ह सोचके साथ खुदको तनावग्रस्त कर लेते है. बढती आत्महत्याओके विषयपर मै बस इतना ही कहना चाहुँगा की आपका शरीर और जीवन सीर्फ आपका नही इसपर आपके पुरे परिवार और समाजका हक है. इसे ऐसेही मीटानेका आपको कोई हक नही. सुखः दुखः तो मानवी जीवनमे लगे ही रहते इसे हर कीसीको पार करणा ही पडता है. अगर आप अभी दुखःमे भी हसके जी रहे हो तो सुखः आते देर नही लगेगी, अगर रोजगार नही मील रहा है तो थोडा इंतजार करो शायद अच्छा रोजगार आपकी प्रतिक्षा कर रहा हो. आयपीएल,ड्रीय एलेवन, पपजी आदी जोखीमभरे खेलोसे खुदको दुर रखे. नशापान ना करे. हो सके तो अपने परिवारके साथ अधिकसे अधीक समय गुजारे जीससे आप अवसादमे जानेसे बचेंगे.और माता पीता भी अपने बच्चोसे इतनी ज्यादे भी अपेक्षाये ना रखे जीसके बोझ तले उनके बच्चोका दम घुटने लगे. और वे कुछ ऐसा कर जाये की बादमे हमे पछताना पडे*