*चातुर्मास हेतू जैन साध्वी जी का सारस्वतपुर नगरी में आगमन*
*सुयशप्रज्ञाश्रीजी सहित अन्य 3 साध्वीजी का सावनेर नगरी में भव्य चातुर्मास प्रवेश ; जैन श्रावक-श्राविका में हर्ष की लहर*
मुख्य संपादक – किशोर ढूँढेले
सावनेरः पौराणिक मान्यताप्राप्त सारस्वतपुर तथा ऐतिहासिक, पावन सावनेर की धरा में, प्रथम बार चातुर्मास हेतु, सुयशप्रज्ञाश्रीजी , नम्रनंदिताजी, हर्षदीक्षिताजी आर्यनंदिताजी, ठाना 4 जैन साध्वीयों का मंगल पदार्पण होणेसे सभी अनुयायीयो मे हर्ष व्याप्त है.
*ज्ञात हो की सुयशप्रज्ञाश्रीजी महाराज साहब का सावनेर नगरी से पुराना रिश्ता रहा है सावनेर के भालेराव हाई स्कूल से उन्होंने दसवी कक्षाकी परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके बाद धर्म की राह पर आगे बढ़ती चली गई।उनका जन्म 14 दिसंबर 1953 को यवतमाल जिले के मोझर ग्राम में हुआ था पिता केसरीमलजी सिंगवी तथा माता सुगनाबाई सिंघवी के संस्कारों में, सात बहना तथा चार भाइयों के भरे पूरे परिवार में उनका लालन-पालन हुआ। उनका दीक्षा पूर्व का नाम” संतोष “था। नाम ही की तरह पूर्णता संतोषी एवं संयमी थी धर्म में उन्हें काफी रूचि थी तथा पढ़ना उनके जीवन का जैसे एक महत्वपूर्ण अंग था। जब भी वक्त मिलता यह धार्मिक किताबों में खो जाया करती थी। शायद इसी की परिणीति ,उनकी संयम यात्रा की वजह बन गई।*
*सावनेर नगरी में बड़े भाई स्वर्गीय प्रकाशमलजी जैन तथा मानमलजी जैन निवास करते थे इसलिए उनका सावनेर से संपर्क आया, तथा यहां से उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनका दीक्षा समारोह 7 मई 1973 को, दारव्हा में संपन्न हुआ तथा उनकी संयम यात्रा की शुरुआत हुई ।गांव गांव ,जन जन तक जिनवाणी पहुंचाने के लिए उन्होंने देश के कई भागों में विहार किया ।इस दौरान उनके चतुर्मास महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश, सौराष्ट्र तथा सर्वाधिक गुजरात में हुए ।बाल ब्रह्मचारी सुयशप्रज्ञाश्रीजी, घोर तपस्वी करके जानी जाती है। उन्होंने, मासखमण (30 दिन के उपवास) सहित 16 उपवास, 15उपवास ,11 उपवास, नौ उपवास, कई अठठाईया ,तेले, बेले ,उपवास सहित, सिद्धि तप चत्तारी अट्ठम,पांचसौ आयंबिल,के साथ कई तपस्या की है तथा निरंतर यह क्रम चल रहा है उनके पावन आगमन से सभी जैन अनुयायियों के साथ समस्त धर्मप्रेमी सावनेर वासी ,अत्यंत हर्षित ,प्रफुल्लित एवं गर्वित महसूस कर रहे हैं ।उन के पावन निश्रा में सावनेर में धर्म की गंगा बहेगी जिसका अमृत पान सभी धर्म प्रेमी उठा पाएंगे।*
*चातुर्मास के 4 महीने भगवान की तप – आराधना करने के दिन*
*जैन श्री संघ के तत्वावधान में चातुर्मास प्रवेश के बाद धर्मसभा को साध्वीजी ने संबोधित किया
चातुर्मास के महत्व के बारे में विस्तार से बताया और कहाँ की धर्म आराधना का पर्व हैं चातुर्मास। इस पर्व में हम जितना धर्म करे उतना कम हैं व्रत,भक्ति और शुभ कर्म को चार माह का चातुर्मास कहा गया हैं। धर्म साधना करनेवालों के लिए यह माह अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि इन चार माह के दौरान साधु संतों का सानिध्य पूरी तरह प्राप्त होता है। गुरु भगवंतों द्वारा लोगों को सदमार्ग दिखाया जाता है। उपरोक्त दिव्य विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्होंने चातुर्मास के महत्व के बारे में विस्तार से बताया उन्होंने कहा जीवन में कभी काम से अपने को समय नहीं होगा लेकिन चातुर्मास के लिए हमे थोड़ा समय निकलना चाहिए। प्रवेश पर सामूहिक आयंबिल तप का आयोजन हुआ। गुरुदेव के साथ आदि 3 ठाणा का भी प्रवेश हुआ।
*मनुष्य जीवन मिलना यह ही पुण्य का काम है – प.पु.साध्वी सुयशप्रज्ञाश्रीजी म. सा.*
*आत्मा को उज्ज्वल पवित्र निर्मल बनाने का महनीय मंत्र है*
तप के क्षेत्र में निरंतर आगे रहना व तप कर्म निर्जरा का अमोघ साधन है। आत्मा को उज्ज्वल पवित्र निर्मल बनाने का महनीय मंत्र है। तप के द्वारा हम अपनी आत्मा का उर्ध्वारोहन करे और मनुष्य जीवन को सार्थक बनाए। साध्वीजी ने प्रेरणा-पाथेय प्रदान करते हुए कहा बरसात की झड़ी लगने से पूर्व तप की कड़ी लगा देना अपने आप मे महत्वपूर्ण है। तप की झड़ी सिर्फ जैन धर्म में ही लग सकती है।
इस आयोजन में सभी सभी जैन श्री संघ ,सावनेर के श्रावक – श्राविका की उपस्तिथि थी.