*सड़कों पर मानसिक रूप से बीमारों को न्याय कब मिलेगा?*
*यह किसकी जिम्मेदारी है?*
*जिला स्तर पर समितियों का गठन किया जाए – हितेश बंन्सोड सामाजिक कार्यकर्ता
*पुलिस कहती है, यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है…*
सावनेर – द मेंटल हेल्थ केयर एक्ट-2017 के अनुसार, पुलिस के साथ-साथ राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि हर व्यक्ति जो उपेक्षित है, अपने घर से बेदखल हो और सड़क पर एक जानवर से भी बदतर स्थिति में मर जाए। यह कानून देश में लागू हो चुका है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इसे लागू ही नहीं किया जा रहा है. मूल रूप से इस कानून और इसके प्रावधानों के बारे में बहुत कम जागरूकता है और जिन सरकारी एजेंसियों से इस कानून को जानने की उम्मीद की जाती है, वे भी इस कानून से अवगत नहीं हैं। नतीजतन, बड़ी संख्या में गरीब, परित्यक्त और सड़क पर मनोचिकित्सक मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह- महीने अथवा सालोसे पीड़ित हैं।*
*किसी भी बड़े शहर या गांव में ज्यादातर मानसिक रूप से बीमार लोगों का जीवन बहुत खराब होता है। जाहिर सी बात है कि इलाज से लेकर दो रोटियां और कम से कम कपड़े तक की उनकी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं. ऐसे कई मनोचिकित्सकों को न केवल उनके घरों से बल्कि समुदाय से भी निकाल दिया जाता है और ऐसे मनोचिकित्सक सड़कों पर या गंदगी में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। जिन लोगों को बेदखल नहीं किया गया है, उनमें से कई घर में या एक कोने में फंसे रह गए हैं। दुर्भाग्य से, मानसिक रूप से बीमार बहुत कम लोगों के साथ इंसान जैसा व्यवहार किया जाता है…*
*मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम-2017 स्पष्ट रूप से कहता है कि प्रत्येक मनोचिकित्सक को उपचार प्राप्त होना चाहिए।*
*मानसिक रूप से बीमार लोगों के पास परिवार न हो या रहने के लिए घर न हो तो भी उन्हें समाज में सामान्य नागरिकों के समान ही रहने का अधिकार होना चाहिए….*
*एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति जो अपनी देखभाल करने में असमर्थ है या दूसरों के लिए हानिकारक है, उस क्षेत्र के थाने के मुखिया की जिम्मेदारी होती है।*
*बेघर व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए और पुलिस को उसके घर की तलाशी लेनी चाहिए।*
*संदर्भ आठ के 100(1) अनुसार मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति जो खुद की देखभाल करने में असमर्थ है या दूसरों के लिए हानिकारक है, उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के प्रमुख की जिम्मेदारी है। अध्याय आठ के 100 (6) के अनुसार, यदि चिकित्सा अधिकारी या मनोचिकित्सक की परीक्षा से पता चलता है कि संबंधित व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार नहीं है, तो व्यक्ति को उसके घर ले जाना चाहिए। अध्याय आठ के 100 (7) के अनुसार बेघर या बेघर व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना और उसके परिवार की तलाश पुलिस के लिए आवश्यक है। चैप्टर 101(1) के तहत पुलिस के लिए जज को रिपोर्ट करना अनिवार्य है तथा सुनिश्चित करणा है कि परिवार द्वारा मनोचिकित्सक का इलाज ठीक से नहीं हो रहा है या नहीं.*
*1987 के अधिनियम के अनुसार मनोचिकित्सकों को अब मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन उनसे निदान और इलाज की उम्मीद की जाती है। यह एक बड़ा बदलाव है*
*वर्षों से ईस ओर सरकार का ध्यान नही*
*यह सच है की मानसिक रूप से बीमार लोगों के हितों की रक्षा के लिए कानून बनाया गया था, लेकिन कानून का शाब्दिक रूप से शून्य प्रवर्तन है। पुलिस को मानसिक रूप से बीमार लोगों को सड़कों पर गिरफ्तार कर सरकारी अस्पतालों में ले जाना चाहिए और सरकार को उनके इलाज की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है। ऐसा क्यों है कि हम मानसिक रूप से बीमार लोगों को स्वीकार करने और उनका इलाज करने के लिए ईमानदारी से तैयार हैं, सरकार या समाज के परोपकारी व्यक्ति को एक जगह उपलब्ध करणेके लिए हमारी मदद करनी चाहिए, ताकि उन्हें भी उनका सही घर या आसरा मिल सके जहा उनका ईलाज हो.वर्तमान में हमारे पास जगह उपलब्ध नहीं है…
*सच तो यह है कि मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए पुलिस को स्पेशल सेल गठीत करणेकी जरूरत है, लेकिन राज्य सरकार कुछ नहीं करना चाहती*
*पुलिस को ईस क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों की मदद से मनोचिकित्सकों को मुख्यधारा में लाने के लिए सामाजिक संगठनों की भी मदद करनी चाहिए ऐसी माँग हितज्योती फाऊंडेशन के संस्थापक हितेश बंन्सोड ने की है ताकी मनोरुग्णोको उचित ईलाज मुहैय्या कर उन्हे उनके परिवारसे मीलाया जा सके.